‘तीन बंदर’ vs ‘गप्पू-चप्पू’: बिहार चुनाव में अब नारे नहीं, नाटक चल रहा है!

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

बिहार विधानसभा चुनाव अब अपने “मनोरंजन और मारक बयानबाज़ी” वाले फेज़ में पहुंच गया है। दरभंगा में रैली को संबोधित करते हुए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने महागठबंधन पर हमला बोलने के लिए महात्मा गांधी के तीन बंदरों की मिसाल दी — मगर ट्विस्ट के साथ।

योगी ने कहा, “गांधी जी ने कहा था — बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो… लेकिन इंडिया गठबंधन के तीन बंदर हैं — पप्पू, टप्पू और अप्पू!

इसके बाद मंच पर तालियों की गूंज थी, और सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़।

योगी का व्यंग्य: ‘तीन बंदर’ की नयी परिभाषा

योगी ने अपने बयान को और धार देते हुए कहा कि —

  • पप्पू सच नहीं बोल सकता,
  • टप्पू सही को देख नहीं सकता,
  • अप्पू सच नहीं सुन सकता।

उन्होंने कहा कि ये वही लोग हैं जिन्होंने “बिहार की राजनीति को जातीयता और परिवारवाद में उलझा दिया।”

अखिलेश का पलटवार: ‘जो बंदर टोली में बैठे हैं…’

जवाब में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ‘एक्स’ (Twitter) पर लिखा:

“जो लोग आईना देखकर आते हैं, उन्हें हर तरफ़ बंदर नज़र आते हैं। बंदर की टोली में बैठा दिये जाएं तो अलग नजर भी नहीं आते हैं!”

यह ट्वीट अब बिहार की पॉलिटिकल ट्रेंडिंग में टॉप पर है — और जाहिर है, अखिलेश ने सीधा निशाना साधा योगी पर।

‘गप्पू और चप्पू’ से बिहार को बचाने की अपील

सिवान की रैली में अखिलेश ने भाजपा को ‘गप्पू और चप्पू’ कह दिया। उन्होंने कहा कि “एनडीए अब वोटों के लिए डर फैलाने और झूठे वादों का सहारा ले रहा है।”

“15 लाख, करोड़ों नौकरियां और चांद पर प्लॉट — सब गप्पू का मामला है।”

अखिलेश ने दावा किया कि बिहार इस बार “समरसता की राजनीति चुनेगा, न कि गप्पू-चप्पू की जोड़ी।”

बिहार की पिच पर अब ‘बंदर बनाम गप्पू’ मुकाबला

जहाँ पहले बिहार का चुनाव मुद्दों पर चलता था — अब मंच पर मीम्स और पंचलाइन गूंज रहे हैं। गांधीजी के बंदरों से लेकर अखिलेश के आईने तक, हर नेता का एक नया ‘डायलॉग पैक’ तैयार है। राजनीति में अब डिबेट नहीं, डिलीवरी स्टाइल और वायरलिटी मायने रखती है।

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